कुछ ऐसी हवा चली
🥹कुछ ऐसी हवा चली🥹
दिल में शोले भड़क रहे हैं,
कुछ ऐसी हवा चली है।
राह सब भटक रहे हैं,
कुछ ऐसी हवा चली है।।
खिलने लगे हैं अब तो ,
ख़िज़ाओं में फूल भी,
टूट रहे प्यार के ,
क्रमश: वसूल भी ,,
तन मन महक रहे हैं,
कुछ ऐसी हवा चली है।।
कलियों से अलिदल के,
अनुबन्ध नये हो गये ,
रस गन्ध की गली के,
प्रतिबन्ध नये हो गये,
सब पीकर बहक रहे हैं,
कुछ ऐसी हवा चली है।।
अन्तर्मन में सपने कई,
सजने लगे हैं आजकल,
वीणा के सोये तार भी,
बजने लगे हैं आज कल,
सारे पंक्षी चहक रहे हैं,
कुछ ऐसी हवा चली है।।
घिर आये कारे बादल,
ज़ुल्फों के साये साये,
सावन "सरिता"मन की ,
जब प्यास न बुझाये ,
रजकण दहक रहे हैं,
कुछ ऐसी हवा चली है।।
सुनीता गुप्ता सरिता कानपुर
Khan
29-Oct-2022 11:36 PM
Very nice 👌🌺
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Sachin dev
29-Oct-2022 06:54 PM
Nice 👌
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Teena yadav
29-Oct-2022 06:24 PM
Very nice
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